यारी दोस्ती
खूब दोस्तों संग होती है बड़ी मौज मस्ती
दोस्तों की दोस्ती में , खूब महफिल है सजती
दो चार पंछी संग बैठते हैं जब एक डाल पर
कलरव में झूलते हैं,झूमते हैं,टहनी है झुकती
जब कभी कहीं मिल जाए मित्रों की मंडली
कहकहों और ठहाकों से महफिल है गुंजती
होतें हैं हसीन पल जब जिगरी यार हैं बैठते
कर याद बीती बातें जाम संग शाम है बितती
कहीं दूर खो जाते हैं ,बचपन के संगी साथी
उम्र पचपन में भी हैं,यारों की याद है टीसती
जब याद आती हैं शरारतें और खड़मस्तियाँ
हो जाती हैं नम आँखें पलकें आँसू से भीगती
अरदास हैं किसी का कभी जिगरी यार न बिछड़े
बिन यार नहीं बहार जिन्दगी मुश्किल में बीतती
खूब दोस्तों संग होती है बड़ी मौज मस्ती
दोस्तों की दोस्ती में , खूब महफिल है सजती
सुखविंद्र सिंह मनसीरत