यारा ग़म नहीं
यारा ग़म नहीं अब किसी बात का।
गया अब जमाना खुराफात का ।
जाने कब जवानी में रखा कदम
पता न चला इस मुलाक़ात का।
कोई दिल को जचा,तो जचता गया
हुआ मौसम सुहाना कायनात का।
आंखें दिन में सपनों में खोने लगी
पता न चले अब , दिन रात का।
ये दुनिया नयी सी अब लगने लगी
नया फसाना नयी शुरुआत का।
इश्क ने अब तो है निकम्मा किया
ठोके किसे दावा अब लूटपाट का।
सुरिंदर कौर