‘याद पापा आ गये मन ढाॅंपते से’
हर पहर जीवन की सरगम साधते से,
याद पापा आ गये मन ढाॅंपते से ।
बरस उनके बिन गये रीते सभी,
मधुर लम्हें मन से ना बीते कभी,
पल रूलाते हैं अभी तक हादसे से..
याद पापा आ गये मन ढाॅंपते से ।।
ब्याह गुड्डे और गुड़ियों का कराना,
ह्रदय से मुझको लगा आँसू छुपाना,
हाथ में आशीष भर-भर काॅंपते से..
याद पापा आ गये मन ढाॅंपते से ।।
सोच कब पाई थी यूँ बिछड़ूॅंगीं उनसे,
शून्यता मन की सदा बाॅंटी थी जिनसे,
हर कदम जीवन की साॅंसे बाँधते से,
याद पापा आ गये मन ढाॅंपते से।।
चढ़ के कंधे पर मेरा कुछ गुनगुनाना,
बंदिशों–लय–ताल संग उनका वो गाना,
थे दरीचे भी समां तब बाँधते से,
याद पापा आ गये मन ढाॅंपते से।।
स्वप्न था उनका मुझे शिक्षित बनाना,
सीख दी पथ–सत्य से ना डगमगाना,
ईश से अनगिन दुआ वो माँगते से,
याद पापा आ गये मन ढाॅंपते से।।
स्वरचित
रश्मि लहर,
लखनऊ