याद गार
आयोजन : याद गार यात्रा
शायद उतने समझदार नही थे हम
लगभग उम्र 14 वर्ष की थी
होली का वक्त था हमको मुंम्बई से राजस्थान हमारे घर जाना था आर्रक्षित टिकिट नही मिलने की वजह से मुझे और मेरे भाई को सामान्य डिब्बे में जाना पड़ रहा था हम दोनों भाई चले गए सामान्य डिब्बे में वहाँ भीड़ कुछ ज्यादा थी फिर भी जैसे तैसे बैठ गए ट्रैन चल पड़ी हमारी सामने की सीट पे एक जोड़ा और उनका छोटा सा बच्चा था सब लोग थोड़ी देर में घुल मिल गए
सब भाषण कारी थे सब कुछ न कुछ बता रहे थे कोई महिलाओ की तारीफ कर रहा था कोई माँ को महान बता रहा था कोई कुछ कोई पुरषो के बारे में बता रहा था ऐसे ही वक्त बीत ता गया रात हो गयी थी उस औरत ने अपने बच्चे को सुला रही थी एकदम अच्छे से
वो बच्चा हंस रहा था थोड़ी देर बाद वो सो गया बाद में उस आदमी ने देखा की उसकी पत्नी को भी नींद आ रही थी उसको लगा ऐसा तो वो उठ कर खड़ा हो गया और पत्नी को सोने का बोल दिया वो औरत अपने बच्चे को लेकर सो गई वो आदमी खड़ा हो गया लगभग 4 घण्टे तक वो खड़ा था में देख रहा था
ये सब पर उस वक्त पता नही क्यों मेरे मन में एक शायर जागा और वो बोला
माँ बड़े प्यार से अपने बच्चे को सुला रही थी
पर कोई था जो उन दोनों को सुला रहा था,,