याद के मोती झरल हम का करीं
#ग़ज़ल
लोर अँखियन में भरल हम का करीं।
याद के मोती झरल हम का करीं।
लोग सब आपन बनल दुश्मन इहाँ,
प्यार से हमरी जरल हम का करीं।
हऽ प्रथा सदियों पुराना देख लीं,
इश्क में मजनूंँ मरल हम का करीं।
साँस भी लीहल भइल मुश्किल बड़ी,
पी रहल बानी गरल हम का करीं।
जड़ बहुत मजबूत भ्रष्टाचार के,
पेट ना कबहूं भरल हम का करीं।
बढ़ गइल बेरोजगारी आजकल,
जिंदगी नइखे सरल हम का करीं।
बाप की मरते फुटानी सब झरल,
बोझ माथे पर परल हम का करीं।
सूर्य अब नवका ज़माना आ गइल,
नीर नजरी से ढरल हम का करीं।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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