आत्महत्या
कितने मुश्किलों से
दम उसने तोड़ा होगा
कैसे उसने उस
तड़प को सहा होगा
जब आखिरी साँस ने
तन का पिंजरा छोड़ा होगा
अंग-अंग उसका
कितना तड़तड़ाया होगा ?
क्या तब उस पल
याद अपनों की उसे
पल भर के लिए भी न आई होगी
उसकी नज़रों में अम्मा की आँचल
न लहरायी होगी
बाबा का हाथ इशारे से
न बुलाया होगा
राखी के धागों में लिपटी
बहन का प्यार न बुलाया होगा
दोस्तों के महफिल की बेपरवाह हँसी
कानों में न गूंजी होगी ?
यक़ीनन याद उसे तो
सब कुछ ही आया होगा
फिर इन यादों के भंवर से निकलने को
युद्ध ख़ुद से ही उसने किया होगा
वार कितने ही उसने सहा होगा
मुक्त अपने ही तन से
जब हुआ होगा
ओह!
कितनी हिम्मत उसने जुटायी होगी
करने को आत्महत्या।
©️ रानी सिंह