याद आते हो
नज़्म- ” याद आते हो ”
तुम्हारे ग़म, उलझनें ज़िन्दगी की,
अपनी हंसी में छुपाते हो ।
बिछड़ कर आज भी रहनुमा,
तुम याद बहुत आते हो ।।
सहर की तरह रोशन हो,
क्यों अंधेरों से घबराते हो ।
नम आंखें ख़ुद यह कहती,
तुम याद बहुत आते हो ।।
महक़ हो,मुश्क़ ए गुलाब हो,
फ़िज़ाओं को तुम महकाते हो ।
रोम रोम कहता बदन का,
तुम याद बहुत आते हो ।।
शामें वीरान मेरी, तेरे बग़ैर,
क्यों ज़िन्दगी बियाबान बनाते हो ।
मेरे पंख, मेरी परवाज़ हो ,
तुम याद बहुत आते हो ।।
© डॉ वासिफ़ क़ाज़ी
काज़ीकीक़लम
28/3/2 ,इक़बाल कालोनी ,अहिल्या पल्टन ,इंदौर ,मध्यप्रदेश