याद आते हो तुम
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वक्त से बेवक्त याद आते हो तुम
दिलोदिमाग में छाये रहते हो तुम
आँखों में नींद नहीं दिल है बेचैन
काली सी रातों में जगाते हो तुम
दिनरात डूबे रहें ख्वाबों ,ख्यालों में
हसीन स्वप्न अक्सर दिखाते हो तुम
उर में पीड़ उठे याद जब आते हो
काया बेजान सी कर जाते हो तुम
तुम बिन हम जैसे नेस्तनाबूद हों
यादों में भी आकर सताते हो तुम
खुद को भूल जाऊँ तेरी चाहत में
मुझको ही मुझसे छीन लेते हो तुम
सुखविन्द्र बाँहें फैलाए पुकारे
बिन बताए कहाँ चले जाते हो तुम
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)