याद आते है
चुनावो की करें चर्चा तो मंजर याद आते है।
सड़क पर जोश में बच्चे ज़ुदा नारे लगाते है।
बड़े नेता हमारे दर पे दौड़े दौड़े’आते है।
चुनावो में ये मंजर भी सभी को दीख जाते है।
गई सत्ता गये नख़रे कलइ खुल सामने आई।
गरीबो के यहां जाकर गले उनको लगाते है।
वही जुमले वही नारे नही है फर्क रत्ती भर।
वही किस्से वही कसमें ,हमारे दर पे खाते है।
चढ़ा इनको मदिर इतना ,जुबाँ पर रोक कब जाने।
जहाँ मर्ज़ी में जो आजाये टुकड़ा फेंक जाते है।
किये वादे कहाँ कितने हिसाबो में कहाँ इनके।
अगर मिल जाये सत्ता तो सभी कुछ भूल जाते है।
नही देना हमे भी मत जो बाटें जाति मज़हब में।
हमारे मुल्क के खातिर कसम इतनी उठाते हैं।
मधु गौतम
ग़ज़ल घिसाई।
1222 – 1222 – 1222 – 1222
क़ाफ़िया : आते
रदीफ़ : हैं ।