याद आते हैं अफसाने
याद आते हैं अफसाने
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जब से मिले यार पुराने
छिड़ गए हैं प्रेम तराने
वो ही बातें, बीते किस्से
याद आते हैं अफसाने
सच्ची झूठी वो अफवाहें
ताजा हुई इसी बहाने
वो मौज मस्तियाँ, नजारे
खूब दिए प्रेम नजराने
बेखौफ की मनमर्जियां
चोरी जाते जब बुलाने
पकड़ी जाती थी चिट्ठियाँ
रख देते तले सिराहने
हंसी-ठिठोली,नादानियाँ
हर रोज के नये ठिकाने
जवानी की वो निशानियाँ
लद गए वो हसीं ज़माने
आशिकी भरे दिल हमारे
शमां के हम थे परवाने
सुखविंद्र आँखें हैं गीली
प्रेम राही थे हम दीवाने
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (केथल)