याद आती हैं
वो गुलशन.फूल,वो रंगीं फिजायें याद आती हैं
मुझे सावन की वो काली घटायें याद आती हैं
बड़ा प्यारा सा अपना गाँव था तालाब के पीछे
मुझे मिटटी के घर की भावनाएं याद आती हैं
वो लाली सूर्य की वो पंक्षियों के गूंजते नग्मे
सुबह के सैर की पागल हवाएँ याद आती हैं
वो नानी और दादी की कथा में घूमती परियाँ
जो ले लेती थीं मेरी हर बलाएँ याद आती हैं
कवच बनकर के मेरे साथ रहती है सदा ‘संजय’
थीं निकली माँ के दिल से जो दुवाएं याद आती हैं