यादों को तुम्हारी…….
यादों को तुम्हारी बड़े करीने से संजो लेता हूँ मैं,
आँखों को जुदाई में अश्कों से भिगो लेता हूँ मैं,
मौसमे-हिज़्राँ में वक़्त गुज़ारना है बड़ा मुश्किल,
लम्हों को तन्हाई में तस्व्वुर में पिरो लेता हूँ मैं,
तुम्हारे ख्यालों की रौशनी जलाती है दिल को ,
खुद को स्याह रातों के अंधेरो में डुबो लेता हूँ मैं,
किस-किस को सुनाते अपनी बर्बादियों की दास्ताँ,
चेहरे को तकिये में छुपा के कुछ देर रो लेता हूँ मैं,
‘दक्ष’ ना जाने ताउम्र कितनी रातें आँखों में गुज़ारे हो,
लकड़ी की सेज़ बनाओ, चादर तान के सो लेता हूँ मैं,
विकास शर्मा ‘दक्ष’