यादों के छांव
यादों के छांव में, पहुंच गए एक शाम ।
गलियां वही थी, बदल गया था नाम।
चल रही थी पुरवाई लेकर धून मधुर मधुर ,
झूम रहे थे तरु नशे में खनक रहे थे पैरों में नुपुर।
दादी मेरी कान खींच दे रही थी सख्त हिदायत ,
हम चढ़कर वहीं तोड़ेंगे आम को ऊंचे दरख़्त ।
बिठा कंधे पर पापा, मेरे करा रहे बागों का सैर ,
लोरियाँ सुना रही थी अम्मा मेरी जैसे फुर्सत में हो खैर।
बच्ची भली मैं खा रही थी वो मेरी दूध कटोरी ,
मामा जी बोल रहे थे मैं खाने में हूं एक नम्बर चटोरी।
सुकून मिला रहा था जैसे पी ली हो यादों का जाम।
अचानक स्तब्ध हुई जैसे नींद से मैं जागी , मैं शाम।
पलकें भीगी थी आंखें नम थी मेरी यादों के छांव में ,
चेतन मन खो गया, खो गई मेरी स्मृति के नाव में।
ननकी पात्रे ‘मिश्री’ बेमेतरा (छत्तीसगढ़)