यादों की परछाइयां
उस सोलहवें साल में
अजीबो-गरीब-से हाल में
पल भर के मिलन के बाद
उम्र भर की जुदाई को
कैसे कोई याद करे-२
(१)
उस मौत-से सन्नाटे में
कब्रिस्तान-से वीराने में
रूहों को हैरान करती हुई
गूंजती रही शहनाई को
कैसे कोई याद करे-२
(२)
रूप की उन गलियों में
खोखली रंगरलियों में
दौलत की खुमारी में हुई
प्यार की रूसवाई को
कैसे कोई याद करे-२
(३)
जिसे उमंगों ने बनाया था,
अल्हड़ तरंगों ने सजाया था
सपनों के उस शहर में
एकाएक मची तबाही को
कैसे कोई याद करे-२
(४)
जीवन में जिससे पहली बार
मची दिल में एक हाहाकार
अंग-अंग में कांटे-सी
उस चुभती हुई तनहाई को
कैसे कोई याद करे-२
(५)
जिसने अच्छा-खासा सब कुछ
उलट-पुलट कर रख दिया
जज़्बात की गर्दन पर ली गई
उस वक़्त की अंगड़ाई को
कैसे कोई याद करे-२
(६)
सब कुछ मिट जाने के बाद
जो रह गई मेरे पास
बिछड़े हुए साथी की
यादों की उस परछाई को
कैसे कोई याद करे-२
Yadon Ki Parchhaian
By
Shekhar Chandra Mitra