यादों का बुखार
यादों का बुखार उतरा है कब।
इन यादों का ये नख़रा है सब ।
इस तरह रखती है ये, जकड़ कर
जैसे नन्हा चले,आंचल पकड़ कर।
बिना इनके सब का सूना जीवन
दिल में बसाये रखे ये तडपन।
कितना चाहा , फेंकू इन्हें नोच कर
रुक गये हाथ ,जाने क्या सोच कर।
फिर भी ,इनसे वीरां जीवन में बहार।
छोड़ न पाए ,इतना इनसे प्यार।
सुरिंदर कौर