यादों का बसेरा”
मेरे गाँव का बरगद
यादों का बसेरा है
उन हवा में हिलती
जड़ों से झूूलता बचपन
जी उठता है आज भी
बेशक उम्र
हो चली है पचपन
इसकी छाँव में बैठ
हमारा खेलना
नीचे बहती नदी से
इकट्ठा किए खूबसूरत
सफेद गोल गोल
पत्थरों को उछालना
इसके विशाल तने के
पीछे छुप कर
दोस्तों को डराना
फिर जो़र जो़र से खिलखिलाना
सब देखा है इसकी शाखों ने
इसके दिल के तहखानों में
आज भी गाँव में
घटी हर घटना
से लिपटे अहसासो
का डेरा है
मेरे गाँव का बरगद
यादों का बसेरा है
आज इससे मिल कर
जाने क्यूँ उन पुरानी
यादों ने आ घेरा है
एक एक पल जीवंत
हो उठा है
बिछ गई है दरी
मंदिर के प्रांगण में
आ बैठे हैं
वो सब दोस्त
जो गुम हो गए हैं
दुनिया के मेले में
बह गए हैं
समय के रेले में
पर इसके घने पत्तों की
शिराओं में जैसे
बहता मेरी कहानी का
पानी, मेरी हर साँझ,
मेरा हर सवेरा है
इसकी हर कोटर में
यादों के पखेरुओं का डेरा है
मेरे गाँव का बरगद
यादों का बसेरा है
पता नहीं क्या
उम्र होगी इस दरख्त की
मेरी माँ एक नन्ही कली थी
जब दुल्हन बन वो
इस गाँव की ओर चली थी
कहती थीं ये दरख्त तब भी
इतना ही विराट था
माँ ने सौ बसंत देखे
काया जर्जर हो चली थी
पर चिरयुवा ये दरख्त
आज भी अपने अशेष
होने का अहसास दिलाता
वैसा का वैसा खड़ा है
इसने जाने
कितनी पुश्तों के सर पर
पितामह की मानिंद
आशीष वाला हाथ फेरा है
हमारा रिश्ता शायद
पाताल से भी गहरा है
इसकी बाँहों में निहित
जाने कितनो क पलछिन
और किस किस का.सवेरा है
मेरे गाँव का बरगद
यादों का बसेरा है
यादों का बसेरा है
अपर्णाथपलियाल”रानू”