यादें
कभी कभी हाथ आ जाते है
अपनी उम्र के साथ पीले होते
वो पन्ने जो
ज़्यादा ज़ोर से खींचो तो
फट जायें
लिखे थे अबसे तीस साल
बीस साल पहले
कई बार सोचा
क्या करूँ
फाड़ फेंक दूँ इन्हें
वैसे भी जब घर
में बात होती है
किसने ज़्यादा फटा पुराना
जोड़ रखा है
तो सवाल इन पर भी उठता ही है
मैं भी अब अपनी किताब पीछे
के पन्नों से हटा कर हल्की
करना चाहता हूँ
फाड़ देता हूँ होली पर
होलिका दहन में काम
आ जायेंगे