यादें
सुबह होने से पहले नींद खुली,
तेरी ज़ुल्फें मेरे चेहरे को सहला रहीं थीं।
तू हमेशा नींद के साथ ही चली जाती थी,
महीनों बाद आँखें खुलने पे तुझे पास पाया।
पर्दों से रिसती किरणों में चमकती हुई,
तेरे चेहरे की मृदुता मुझे बुला रही थी।
तेरे करीब होने के अहसास को भूलने लगा था,
तुम्हारे आलिंगन में खुद को पाकर सुकून आया।
ऐसा लगा जैसे इन चंद हफ़्तों का इंतज़ार,
मेरी अभिलाषाएं कई बरसों से कर रहीं थीं।
तूने धीरे से अपनी ओर खींच कर,
मेरी हर ख्वाहिश को अपने सीने से लगाया।
– सिद्धांत शर्मा