यादें
यादें
हसीन बुढापा आता बैरी
हड्डियों में दर्द सताता बैरी
शूगर-बी. पी. सब बढ़ जा
दांतों में दर्द भी बढ़ जाता
जिव्हा का स्वाद भी जाये
हृष्ट- पुष्ट तन-मन ना रहे
जेब में भरा धन न रहवे
बुढ़पा बैरी आन सतावे
आंखों पे चश्मे तब चढवा
हंसता-उछलता वो देखता
बच्चपन की यादें सोचता
बुढापा बैरी आकर सताता
दोस्तों के संग घुमा करते थे
मस्ती में नाचना- झूमा करते
किसी बात की फिक्र ना थी
ग़म का कोई जिक्र भी ना थी
इमली- गुड्ड सी खट्टी- मीठी
याद हमें जब आती हैं, मीठी
घुम जग सारा आऊँ, मैं यारों
बचपन ही कितना हैं अच्छा
काश! वो बचपन लौट आये
जिम्मेदारी न फिक्र वो सताये
मिलती थी चवन्नी- अढनी ही
ईमली- गुडदानी, टाफी खाई
माँ मुझे फिर बचपन में लौट दे
गुड्डे- गुडिया मेरी राह हैं ताकते
मेले में हम सब बच्चे जाते थे
बुढ़ी के बाल खा, खुश होते
अब बोझ के नीचे दबाता जीवन
हरपल चिंता मन में धुमा जीवन
खर्चे घने आमदनी थोड़ी, जीवन
उस बचपन की याद में है जीवन
जिया मेरा घबराव सोचकर अब
उन लम्हों को मन सोचकर अब
बालकपन अच्छा, सोचकर अब
यादें आती- जाती, सोचकर अब
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़, हरियाणा