यादें
भूल
चले है सब
आज
डाकिये को
प्यार
अपनेपन
सुख दुःख
के समाचार
का माध्यम थे
डाकिये
धूप ठ॔ड
बारिश
कभी पैदल
तो कभी
साईकिल
पहुंचाते थे संदेशा
डाकिये
चिट्ठी लिखते
तो कभी
पढ़ कर
सुनाते भी थे
डाकिये
माँ की
उम्मींदे
बहन की
आस थे
डाकिये
बदला जमाना
स्मार्ट फोन ने
बदल दिये
रिश्ते
आने वाली
पीढी को
बताना है
डाकियों के
बारे में
सब के
लाडले हैं
डाकिये
भूला
सकते नहीं
डाकियों को
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल