यादें
महीनों बीत गए तुम्हे देखे
बीते बरसों संग चले।
मन यादों से रीत न पाया
बन दीपक दिन रैन जले।
कैसा साथ तुम्हारा था प्रिय
कैसी दिवसों की व्यथा अनूप
दूर रहो तुम कितना भी पर
सांसों के संग सदा चले।।
मिल न सके हम मिलकर भी
और भूल सके न बिसराकर
कैसी प्रीत की उलझन देखो
बन शबनम सी सदा बले।
अबके आना साथी तुम
सपनो में चुपके चुपके
संग चलेंगें फिर से हम
बैठेंगें कहीं अंबर के तले
ममता महेश।