यादें
आजकल ना जाने क्यूँ
तुम्हारी कमी खलती है बहुत…
बंद दरवाज़ो में तुम्हारी यादें
सिसकती है बहुत…
ख्वाहिश हैं मेरी ,
मैं बनूँ मुकद्दर तुम्हारा…
टूटे दिल की दीवारें
दर्द देती है बहुत…
लाख दावा करे जिंदगी …
तुम्हें भूल जाने का
बहाने से फिर भी..
तुम्हें याद करती है बहुत…
.लरजते हैं होंठ मुस्कुराने के लिए…और
तेरे दीदार को ये आँखें
तरसती है बहुत…
……निधि भार्गव