यादें…यादें…यादें… ( Happy Friendship Day )
चलो आज पुराना एलबम खोलते हैं
दोस्तों को दिल की बातें याद कराते हैं ,
कैसे सब किसी बात पर मुँह फुलाते थे
और हर थोड़ी देर पर सबको मनाते थे
गपशप को बीच में रोक कर
एकदम मुँह ना खोलने की टोक कर ,
दो मिनट में लौट कर आने को बोल
वापस आ कर बोलना ” अब मुँह खोल ” ,
डबल चौकी पर आओ आओ कहते थे
एक ही कंबल में सब घुस जाते थे ,
जगह ना मिलने पर अचानक से
कुछ बोल कर सबको उठाते थे ,
सब लोग तेजी से उठ कर
भागते हुये कमरे के बाहर जानते थे ,
खुद अपनी जगह से नही उठते थे
ये मजाक था कह कर ठहाका लगाते थे ,
बाथरूम के बाहर बाल्टी को लाईन में रखते थे
क्लास है कह चार बाल्टियों के आगे बढ़ाते थे ,
ऐसा कर दोस्त को देख आँख दबाते थे
इस चालाकी पर खुद की पीठ थपथपाते थे ,
कोई हिमाक़त नही करता था
हमारे बीच नही घुसता था
अगर गलती से भी ये गलती करता था
फिर तो वो बेचारा बे- मौत मरता था ,
आज भी वो दिन याद आतें हैं
सपना बन नैनो में छाते हैं
शिकवा गिला पल में मिट जाता था
कोई भी बात कोई दिल पर नही लेता था ,
आओ वक्त का पहिया घुमाते हैं
वहीं वापस लौट जाते हैं
कोई कितनी भी आवाज लगाये
हम बहरे बन जाते हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02/08/2020 )