**यादें बचपन की**आज सामने रखता हूं!
दिन भी क्या थे वे बचपन के, याद आज उन्हें करता हूं।
ह्रदय पटल की उन स्मृतियों को, आज सामने रखता हूं।
खेल खेल में हारे कभी थे, और कभी हम जीत गए।
खेल खिलौने बड़े सलोने, दिन सारे उन्हीं में बीत गए।।
सुबह से लेकर सायं काल तक , दुनिया अपने निराली थी।
बाल सखाओ की धमाचौकड़ी संग, मनती रोज दिवाली थी।
खुशियों के उन पलों की खातिर ,अब तो रोज तरसता हूं।
ह्रदय पटल की उन स्मृतियों को आज सामने रखता हूं।।
मां का लाड, पिता का प्यार, मिलता रहता था अपार।
जो मांगा मिला वही तो, कितना सुंदर था संसार।
कभी कागज की कश्ती ,करते रहते कितनी मस्ती।
गुड्डे गुड़ियों के बीच ही ,बना ली थी अपनी बस्ती।
थे कितने सुहाने पल वे, आंहे उन्हीं के लिए भरता हूं।
ह्रदय पटल की उन स्मृतियों ,को आज सामने रखता हूं।।
हे मेरे अतीत के बचपन,तू क्या फिर से आएगा।
भेदभाव रहित था वह जीवन ,क्या ऐसा कर पाएगा।
था सबसे अपनापन, अनुनय वह सुखद भोलापन।
न तेरा न मेरा सांझ हो या सवेरा सुंदर कितना वह बचपन।
हो जाए जीवन अब भी ऐसा,भाव हृदय में भरता हूं।
ह्रदय पटल की उन स्मृतियों को आज सामने रखता हूं।।
राजेश व्यास अनुनय