यादें जीवन की
याद आते हैं
बचपन के वो दृश्य
ठंड के दिन में
चूल्हे के पास बैठ कर
हाथ सेंकते हुए
माँ के हाथ की
गरमागरम रोटी खाना
याद आता है
वो दृश्य
पिताजी के साथ
साईकिल पर
आगे डंडे पर
बैठ कर रेल देखने
स्टेशन जाना
याद है
आज भी वो दृश्य
स्कूल में शनिवार को
बाल सभा में
गाया ये गाना
“नन्हा मुन्ना राही हूँ
देश का सिपाही हूँ ।”
याद है
वो रक्षाबंधन का दृश्य
पहले राखी पसंद करते थे
फिर बहन से बंधवाते थे
याद है वो दृश्य
दोस्तों के साथ
स्कूल से गोल मार कर
पिक्चर देखना
होटल जाना
मौज मस्ती करना
फिर घर पर
पिताजी के डंडे खाना
याद है वो दृश्य
गणपति स्थापना
दुर्गा जी स्थापना
होली दिवाली ईद
क्रिसमस पर साथ साथ
त्यौहार मनाना
दृश्य तो जुडे
रहते हैं यादो से
कभी खट्टे
कभी मीठे
कभी फीके
कभी अदृश्य
कभी अंतर्मन से जुड़े
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल