कैसे?
अब मुझे बातों ही बातों में फंसाओगे कैसे?
मेरे बाद तुम मुझसा दुश्मन लाओगे कैसे?
अपनी चालबाजियों से मुझको रिझाओगे कैसे?
मेरे ही बनाए खेल में भला मुझे हराओगे कैसे?
अपना सुंदर सा चेहरा अब दिखाओगे कैसे?
सबके सामने मुझसे नज़रें मिलाओगे कैसे?
अभी बाकी है मुझमें हिम्मत बहुत, तो सोच लो!
मेरे जूनून की उलफत से खुद को बचाओगे कैसे?
मेरे अंदर है जो आग उसको बुझाओगे कैसे?
मेरे ही बनाए खेल में भला मुझे हराओगे कैसे?
मैं वो सितारा नहीं जो टूट कर बिखर जाए,
मेरे एक जर्रे का भी हौसला तोड़ पाओगे कैसे?
© अभिषेक पाण्डेय अभि