यात्रा
चला जा रहा हूँ और
अभी तलास जारी है
खाने में, पीने में ,
जीने में और मरने में
खोने में , पाने में,
सोने में और करने में।
फूलों में, काँटों में ,
मीठी-कड़वी बातों में,
वर्फ में , अंगारों में,
सोती-जगती रातों में।
पतझड़ में , बसंत में,
पास और अनंत में।
सुन्दरता में, कुरूपता में
मन चाही अनुरूपता में।
दुर्गन्ध में, इत्र में ,
शत्रु और मित्र में ।
सुख में और दुःख में,
बहती हवा के रुख में।
मान में , अपमान में,
स्वंय के अभिमान में।
वृक्ष और बीज में,
संसार की हर चीज में।
तलास जारी है……
भटकते – भटकते
चला जा रहा हूँ और
तलास जारी है।
पर पता नही है….
क्या है , कहाँ है ,
किधर है और कैसी है।
जबतक नही मिलेगी,
चलता रहूंगा, भटकता रहूंगा
अनंत जन्मों तक ।
©”अमित”