यात्रा
प्रेम, प्रेम हम भी समझते हैं,
मां का, बाप का, भाई का,
बहन का,बीबी का, अपनो का।
गला कैसे घोंट दूं मिट्टी का,
परिवार का, समाज का, देश का,
बच्चों के लिए देखे सपनों का।।
निरंतर चलता पथिक हूं कठिन राहों का,
न डरता कांटों से, पत्थर से,
लहरों से, जंगली घनेरों अंधेरों से।
उम्मीद है आशा है विश्वास है,
विपरीत परिस्थिति में भी आस है,
प्रेम विजयी होगा ” संजय” उमंग है उल्लास है।।