Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Jul 2017 · 2 min read

यात्रा संस्मरण

पिछले साल मैं वैष्णव देवी गई थी। माँ के दर्शन के बाद दिल्ली वापस आ रही थी। ट्रेन शाम की थी। वैष्णव देवी की चढाई के बाद मैं काफी थक गई थी। इसलिए ट्रेन पर चढते ही लेट गई।हमारे सामने की सीट खाली पड़ी थी। अगले स्टेशन में एक परिवार चढ़े। खाली सीट उनलोगों की थी। उनके साथ एक छोटी सी बहुत ही प्यारी सी बच्ची थी। उस मासूम सी बच्ची ने मुझे देखा और हँस दी मैं भी जबाब में मुस्कुरा दी।वो लगभग तीन-चार साल की होगी। वो बच्ची काफी देर खेलती रही और रह रह कर मेरे पास आ जाती। कभी कुछ कभी कुछ पूछती, मैं उस के हर सवाल का जवाब मुस्कराहट के साथ दे रही थी। सोने का समय हो रहा था। उसकी माँ बार बार उसे सोने कह रही थी पर वो बच्ची। अभी नहीं कह कर जाने से मना कर देती। और मुझ से चिपक जाती। मैंने भी कहा देखो गुड़िया अब सो जाओ अच्छे बच्चे मम्मी पापा का कहना मानते हैं।काफी जद्दोजहद के बाद बड़ी मुश्किल से माँ के पास गई। पर पल भर में बोल पड़ी। नहीं मुझे आॅटी के पास सोना है, मैं देख रही थी पर चुप थी। माँ उसे समझा रही थी, उसके पापा भी पर वह मानने को तैयार नहीं बस एक ही रट मुझे आॅटी के पास सोना है। फिर मुझ से नहीं रहा गया मैंने उस बच्ची के मम्मी पापा से बोलकर उसे अपने साथ सुला ली। वह बच्ची मुझ से ऐसे चिपक कर सो गई जैसे कि मैं ही उसकी माँ हूँ। सुबह तक वो बच्ची मुझे अपने बाहों में कसकर पकड़े सोयी रही। ऐसा लग रहा था कि हम दोनों एक-दूसरे को जन्मों से जानते हो।ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम अभी मिले हैं, लग रहा था कि वो मुझे वर्षों से जानती है। वो मेरी बाहों में सुकून से सो रही थी, और जाने क्यों मैं उसे पूरी रात देखती रही। उस मासूम सी बच्ची की अपनेपन में मंत्रमुग्ध हो कर। सुबह-सुबह हम दिल्ली पहुंच गए। हमलोग साथ ही उतरे पर उतरते ही हमें उस बच्ची को अलविदा कहना पड़ा। मैं घर आ गई उस बच्ची की मीठी सी यादें भी अपने साथ घर ले आई। वो जब मुझ से चिपक कर सो रही थी मैं उसकी एक तस्वीर निकाल ली थी। वो तस्वीर अब भी मेरे पास है। वो अजनबी शायद ही कभी मिलेगी अगर मिलेगी भी तो पहचानेगी नहीं। और जब मिलेगी तो बड़ी हो जायेगी, ना मैं पहचान पाऊँगी उसे, ना वो मुझे, बस इस यात्रा की यादें हैं, जो सदा दिल में रहेगी। जब भी तस्वीर देखूँगी वो याद आ जायेगी।
एक गीत याद आ गया है —
अाते – जाते खुबसूरत आवारा सड़कों पे
कभी-कभी इत्तेफाक से, कितने अनजान लोग मिल जाते हैं,
उसमें से कुछ लोग भूल जाते हैं, कुछ याद रह जाते हैं

????—लक्ष्मी सिंह ?☺

Language: Hindi
2 Likes · 534 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from लक्ष्मी सिंह
View all

You may also like these posts

छाव का एहसास
छाव का एहसास
Akash RC Sharma
समझ
समझ
Dinesh Kumar Gangwar
" मेहबूब "
Dr. Kishan tandon kranti
कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
अब चुप रहतेहै
अब चुप रहतेहै
Seema gupta,Alwar
विवाहित बेटी की उलझन
विवाहित बेटी की उलझन
indu parashar
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
चंद्रयान ३
चंद्रयान ३
प्रदीप कुमार गुप्ता
हमारी मंजिल को एक अच्छा सा ख्वाब देंगे हम!
हमारी मंजिल को एक अच्छा सा ख्वाब देंगे हम!
Diwakar Mahto
हौसला
हौसला
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
रे मन  अब तो मान जा ,
रे मन अब तो मान जा ,
sushil sarna
मैं शिक्षक हूँ साहब
मैं शिक्षक हूँ साहब
Saraswati Bajpai
वतन से हम सभी इस वास्ते जीना व मरना है।
वतन से हम सभी इस वास्ते जीना व मरना है।
सत्य कुमार प्रेमी
चाय की प्याली!
चाय की प्याली!
कविता झा ‘गीत’
मईया एक सहारा
मईया एक सहारा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
*तानाजी पवार: जिनके हाथों में सोने और चॉंदी के टंच निकालने क
*तानाजी पवार: जिनके हाथों में सोने और चॉंदी के टंच निकालने क
Ravi Prakash
बच्चों की ख्वाहिशों का गला घोंट के कहा,,
बच्चों की ख्वाहिशों का गला घोंट के कहा,,
Shweta Soni
कजरी
कजरी
Shailendra Aseem
4158.💐 *पूर्णिका* 💐
4158.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
सपनों में खो जाते अक्सर
सपनों में खो जाते अक्सर
Dr Archana Gupta
दोहा
दोहा
गुमनाम 'बाबा'
पसंद उसे कीजिए जो आप में परिवर्तन लाये क्योंकि प्रभावित तो म
पसंद उसे कीजिए जो आप में परिवर्तन लाये क्योंकि प्रभावित तो म
Ranjeet kumar patre
लोग मेरे  इरादों को नहीं पहचान पाते।
लोग मेरे इरादों को नहीं पहचान पाते।
Ashwini sharma
*मैं और मेरी तन्हाई*
*मैं और मेरी तन्हाई*
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
इश्क़ एक सबब था मेरी ज़िन्दगी मे,
इश्क़ एक सबब था मेरी ज़िन्दगी मे,
पूर्वार्थ
जनाब नशे में हैं
जनाब नशे में हैं
डॉ. एकान्त नेगी
जो कहना है खुल के कह दे....
जो कहना है खुल के कह दे....
Shubham Pandey (S P)
मुझे भूल गए न
मुझे भूल गए न
मधुसूदन गौतम
पेंसिल हो या पेन‌ लिखने का सच हैं।
पेंसिल हो या पेन‌ लिखने का सच हैं।
Neeraj Agarwal
Mental health
Mental health
Bidyadhar Mantry
Loading...