यह है इंसानों की दुनिया ..
क्या यही है इंसानों की दुनिया ,
झूठी और मक्कार यह दुनिया .
कुछ आस्तीन के सांप हैं यहाँ ,
है दगाबाज़ और कपटी दुनिया .
आग लगाए अपने ही आशियाँ में,
ऐसे चिरागों से भरी है ये दुनिया .
दीमक बन अपना घर खा जाये ,
ऐसे दुश्मनों से भरी है दुनिया.
यहाँ कुछ फूल है तो कुछ कांटे भी,
गहरी साजिशें करती है यह दुनिया.
इंसानों की परिभाषा बदल चुकी है ,
इंसान के रूप में शैतानो की है दुनिया .
इंसान से डरता है खुद आज इंसान ही ,
कितने ही वेह्शी /दरिंदों से भरी है दुनिया.
जिंदगी है महंगी और मौत सस्ती जहाँ,
असंख्य लाशों के ढेर से भरी है दुनिया.
कुछ निरीह ,मासूम इंसान ,जीव-जंतु ,
पक्षी और प्रकृति हेतु नहीं रही यह दुनिया.
इस दुनिया को आग लगा दी ! मिटा दो !! ,
चलो फिर से बसायें नयी प्यार की दुनिया.