यह स्पर्शज्ञान नहीं मेरा केवल ,
यह स्पर्शज्ञान नहीं मेरा केवल ,
सकल ब्रह्माण्ड गवाही देता है
संघर्ष विकट स्थितियां ही
स्वयम्भू कोटिकृपा पात्र को देता है
दिनकर स्वंम साक्षी है इसका
प्रति रश्मि यही कहने आती है
प्रकाशित बसुंधरा करने को
यह कठिन ताप सह लेता है
रोज़ सांझ के ढलते ही
सुधाकर यही बतलाने आता है
वस्ल ऐ भोर होने से पहले
“दीप” शब ऐ अंधेरा होता है
….जारी