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6 Oct 2016 · 1 min read

यह सृष्टि हो मनभावनी..: छंद हरिगीतिका

सब देवता थे जब दुखी तब विष्णुश्रीहरि ने कहा.
शुचि क्षीरमंथन देवदानव मिल करो सागर नहा.
जब बन मथानी मन्दराचल था रसातल जा रहा,
तब कूर्मरूपी अवतरण ले भार प्रभु ने था सहा..

शुचि पूर्णिमा बैशाख की कच्छप जयन्ती पावनी.
अति शुभ समय निर्माण का यह सृष्टि हो मनभावनी.
रसवृष्टि ‘अम्बर’ यह करे आलोक फैले ज्ञान का.
मन कूर्मभक्ति बनी रहे अवसान हो अभिमान का..

–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’

Language: Hindi
249 Views
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