यह सूखे होंठ समंदर की मेहरबानी है
ये सूखे होंट समंदर की मेहरबानी है।
जो मेरी प्यास बुझा दे कहां वो पानी है।
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वह खेलता है समंदर की लहर में लेकिन।
हां मगर प्यास की उस की अजब कहानी है ।
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वह अपने लहजे को शायद बदल नहीं पाया।
नई शराब है बोतल मगर पुरानी है।
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ज़ुल्म सहना भी ज़ालिम की तरफदारी है।
मुझे तो लगता है खामोशियां बेमानी है।
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वह अपनी जा़त में एकता है मेरा मालिक है।
वहदहू ला शरीक उसका कौन सानी है।
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हमारी आंख से नींदे भी रूठ कर अब तो।
चली गई है तुम्हे बात यह बतानी है।
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किसे सुनाते हम,हाले दिल तुम्हारे सिवा।
दफन है सीने में पुर दर्द जो कहानी है।
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वह समझ जायेगा इस दिल की बेक़रारी को।
हां मगर सच है यही बात तो छुपानी है।
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रास्ते प्यार के, हम मानते हैं मुश्किल है।
ताल्लुकात तो हर हाल में निभानी है।
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“सगी़र” छोड़ गया, उसको याद क्या करना।
न इंतजा़र है,आंखों में अब न पानी है।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच