गहन बोध-आलोक, लोक का कल है बेटी/ पकड़ प्रीति को कहो एक हैं बेटा-बेटी
बेटा-बेटी सम समझ,कर समता जलपान|
दो संताने बहुत हैं,पकड़ राष्ट्रहित ज्ञान||
पकड़ राष्ट्रहित ज्ञान, गुणीं बन, तज शैतानी|
फैला प्रेम-सुगंध, त्याग कलुषित मनमानी||
कह “नायक” कविराय, कहो नहिं कि वह हेठी||
गहन बोध-आलोक, लोक का कल है बेटी||
बेटी काटी गर्भ में, लड़का से अति प्रेम|
मोह इधर,उत ईर्षा, राष्ट्र द्वंद के बैन||
राष्ट्र द्वंद के बैन, झूठ भ्रम का टुटका है|
ज्ञान-खेत में काँस, मनुज भूला-भटका है||
कह “नायक” कविराय, नहीं वह बिलकुल हेठी|
पकड़ प्रीति को कहो, एक हैं बेटा-बेटी||
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता