” यह सावन की रीत “
#विधा : दोहा छंद
#मात्रा भार : 13-11
दोहावली
थाल सजा सावन खड़ा , पावस ले जलधार ।
धरा कहे श्रृंगार कर , चलो चलें शिव द्वार ।।
झूले बाँधें हैं लता , पवन सुनाए गीत ।
नद जल सिर चढ़कर कहे , शिव से पावन प्रीत ।।
नगर द्वार सब है सजें , भोले के दर भीर ।
जोगी रमे न जोग में , काटें जन जन पीर ।।
जयकारे दे भक्तजन , करते यह आव्हान ।
“दया करो हम दीन पर , आशुतोष भगवान” ।।
पावन नद में स्नान हो , तन मन रहे पुनीत ।
काँवड़ भर जन जन चले , यह सावन की रीत ।।
पूजा में क्या चाहिए , विल्बपत्र , जलधार ।
इतने में शिव रीझते , सदा खुले हैं द्वार ।।
तन से तो उपवास हो , सहज रखें मन भाव ।
शिव का अर्चन है यही , उपजें नहीं कुभाव ।।
साधें ज्ञानेन्द्रिय सभी , ध्यान ज्योति का पुंज ।
ओम नाद गुंजार हो , खिल जाता हृद कुंज ।।
भंडारों में दान दें , बनें सहायक दीन ।
सहज , सरल , मन भाव से , रहें भक्ति में लीन ।।
महादेव तो हैं महा , काटें यम के फंद ।
सदा पूजते हम रहे , मन रहता निर्द्वन्द ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )