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31 May 2024 · 1 min read

यह सादगी ये नमी ये मासूमियत कुछ तो है

यह सादगी ये नमी ये मासूमियत कुछ तो है
तेरे लहजे पर यह कोरी किताब कुछ तो है
यह सादगी ये नमी ये मासूमियत कुछ तो है ।

जब से तुझे देखा बाकी दुनिया एक तरफ ;
तुझे आंख भरके देखने की तलब कुछ तो है।।

जो रास्ता कभी मुकम्मल ही नहीं हो सकता ,
उस रास्ते की ओर देखने की जिद कुछ तो है ।

कहना चाहता हूं मैं तुझसे बहुत कुछ लेकिन ,
तेरे छोड़ के जाने का अक्सर डर कुछ तो है ।।

कोई रास्ता मकबूलिअत तक ना पहुंचा भले,
लेकिन रास्ते में चलते रहने का दर्द ए सर तो है ।
मैं सब कुछ छोड़ कर तेरे पीछे आ भी जाता ,
मुझे पीछे लौटना होता है मेरा घर भी तो है ।
✍️कवि दीपक सरल

Language: Hindi
24 Views
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