यह विश्व बड़ी टेढ़ीमेढ़ी
जो सर्पों को दुध पीलाते है ,
बदले में विष हीं पाते है ।
शत्रु को गले लगाते है ,
खंजर बदले में पाते है ।
जो बाँसे सीधी होती है ,
वह पहले काटी जाती है ।
छल-छद्म रहित जो होते है ,
पग-पग पर ठोकर खाते है ।
यह विश्व बड़ी टेढ़ीमेढ़ी ,
संसार बड़ी उलझी-उलझी ।
हर मानव का मन अटपट है ,
जन-जन में चलता खटपट है ।
शासक भी अब शोषक है ,
“रघुनाथ” मात्र एक पोषक है ।
पर शांति , स्नेह , सम्मान मात्र ,
हर हृदय की बस एक चाहत है ।
हर हाथों को जब काम मिले ,
नारी को सम्मान मिले ।
हर बच्चों को जब ज्ञान मिले ,
तब भारत को अभिमान मिले ।
तब भारत को अभिमान मिले ।
✍️समीर कुमार “कन्हैया”