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25 Jul 2018 · 1 min read

यह रिस्ता,कैसा है

हम्मी से शिकवा,और हम्ही से शिकायत,
हम्ही से पाती वो हर रियायत।
हम्ही से रहता हैउसको गिला भी,
हम्ही से जुडा है,उनका हर सिलसिला भी।
हम से है उनकी पहचां,हम्ही उनके अरमां भी,
जुड कर हम से,नई पहचां हमे दी,
मिटा कर अपनी हस्ती,हमको ही बख्स दी।
मेरे सुने घर में,दिये बेटा-बेटी,
मेरे सारे सुख -दुख को है अपने मे समेटी।
कोई और नहीं वह ,है मेरी जीवन साथी,
कभी बोझ बनती,तो कभी सहारे की लाठी।
कभी भोली भाली सीसुरत तो कभी दुर्गा की भांति,
कभी मां सी ममता में,है खो सी जाति।
कैसा है यह रिस्ता,और कैसी इसकी ख्याति,
न समझा कभी मैं,न समझी यह दुनिया सारी,
कैसी है हमारी यह भारतीय नारी,
जो है किसी की बहना,तो है पत्नि हमारी,
है कहीं माता तो,कहीं बिटिया सी प्यारी,
ऐसी ही है मेरे भारत की नारी।

Language: Hindi
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