यह धरती भी तो, हमारी एक माता है
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यह धरती भी तो, हमारी एक माता है।
इंसान आखिर यह क्यों, भूल जाता है।।
यह धरती भी तो———————–।।
पैदा हुए हैं हम सभी, धरती की गोद में।
बचपन हमारा बीता है, धरती की गोद में।।
माँ की ममता भी इंसान, धरती से पाता है।
इंसान आखिर यह क्यों, भूल जाता है।।
यह धरती भी तो———————–।।
धरती के रूप अनेक, कितने सुंदर है।
कहीं पर्वत, कहीं मैदान, कहीं समुंदर है।।
भंडार खनिजों के इंसान, धरती से पाता है।
इंसान आखिर यह क्यों,भूल जाता है।।
यह धरती भी तो———————-।।
ये पेड़ पौधें भी तो, धरती पर पलते हैं।
जिन पर सभी जीव जंतु , निर्भर रहते हैं।।
जीवन में शरण इंसान, धरती से ही पाता है।
इंसान आखिर यह क्यों, भूल जाता है।।
यह धरती भी तो————————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)