*यह थाली के बैंगन हैं, हर समय लुढ़कते पाएँगे(हिंदी गजल/गीतिक
यह थाली के बैंगन हैं, हर समय लुढ़कते पाएँगे(हिंदी गजल/गीतिका)
■■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
यह थाली के बैंगन हैं ,हर समय लुढ़कते पाएँगे
जिसकी भी सरकार बनेगी ,उसी तरफ ढुल जाएँगे
(2)
इनको कोई शर्म नहीं है ,दल सौ बार बदलने में
छेद करेंगे उस थाली में ,जिस थाली में खाएँगे
(3)
यह दलबदलू नेता इनका ,कोई सिद्धांत नहीं है
यह कुर्सी के चारण हैं ,गुण कुर्सी के ही गाएँगे
(4)
नेता हैं पर्यटक , दलों में सैर – सपाटे करते हैं
सिर्फ कार्यकर्ता ही धूनी को सौ साल रमाएँगे
(5)
आदर्शों के लिए समर्पित आम आदमी पाया है
नेता जी भी आदर्शों को , जाने कब अपनाएँगे
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451