यह तो मैंने कभी सोचा न था
मैं जिस किश्ती पर
सवार
वह झील के जल में
परछाई बनकर
एक कंवल सी खिल जायेगी
यह तो मैंने कभी सोचा न
था
सूरज की एक उगती किरण
मुझे मेरे अन्तर्मन की
दहलीज से
इतने पास से छूकर गुजर
जायेगी
यह तो मैंने कभी सोचा न
था
आभास होगा मुझे
तेरे करीब होने का
जीवंत होने का
भूल जाऊंगा मैं दुख अपने
तुझे हमेशा के लिए
खोने का
हो जाऊंगा मैं तेरा
जैसे सपनों को मिले
जमीन के ठहरे हुए मंजर
कहीं
तुझे खोजने के लिए
मैं दूर निकल आऊंगा
खुद से ही इतना
यह तो मैंने कभी सोचा न
था
मैं हो जाऊंगा
इतना भावुक
इतना संवेदनशील
इतना बेचैन
इतना तन्हा
तेरे प्यार में डूब जाऊंगा इतना
जैसे पानी में डूबी
कोई तरंग
खुद को भुलाकर
जग को बिसराकर
तेरे बारे में सोचूंगा
तेरे गीतों को अपने होठों से
गुनगुनाता रहूंगा
मरते दम तक
यह तो मैंने कभी सोचा न
था।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001