यह तो दिल की चाहत थी — गजल/ गीतिका
नजरों का कसूर कहां था ,यह तो दिल की चाहत थी।
तुझे देखकर ही तो मिलती, इस दिल को राहत थी।।
अब समझ में आया मुझे ,क्यों लोग दीवाने हो जाते हैं,
मिल जाए दर्दे दिल का राही मिलती तभी राहत थी।।
कब हुआ कैसे हुआ क्यों हुआ ,कहां खबर लगती है।
अब तो रोज धड़कने लगा दिल पड़ने लगी आदत थी।।
“मैं “और “तू” ही क्या जमाना इसी दौर से गुजरा होगा।
यह किसी की नहीं, शायद प्रकृति की शरारत थी।।
मिलना मिलाना नहीं मिलने पर घबरा जाना।
“अनुनय” प्यार को प्यार की ही तो चाहत थी।।