यह तृषाग्नि तो
लो
फिर एक नई सुबह हो गई
आज फिर मैं रेत की हल्की गीली सतह पर
एक नई कहानी लिखूंगी
आंसुओं की धार से भी जो न
धुले
वह रवानी लिखूंगी
आज फिर दिन ढल जायेगा
शाम हो जायेगी
फिर रात भी ऐसे ही
सपने देखते देखते गुजर जायेगी
कल फिर एक नई सुबह होगी
जिंदगी एक रोज ऐसे ही
कहीं किसी मोड़ पर
खत्म हो जायेगी लेकिन
मैं जिंदगी से थकी नहीं
एक जिंदगी जो खत्म होगी
मैं दोबारा जन्म लूंगी
मैं बार बार जन्म लूंगी
मेरे लिखने का सिलसिला
कभी थमेगा नहीं
मेरी लिखने की दीवानगी
कहीं कम न होगी
यह तृषाग्नि तो
यूं एक जीवन में शांत न होगी
अपनी इस चाहत को पूरा करने
के लिए
मुझे लेने होंगे कई जन्म
यह एक जन्म तो इस साधना के
लिए
काफी नहीं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001