यह तुम्हारी नफरत ही दुश्मन है तुम्हारी
तुम्हारी यह नफरत ही, दुश्मन है तुम्हारी।
नफरत इतनी हमसे करो नहीं।।
हमसे तो ज्यादा तुम्हारी है बर्बादी।
गुस्सा इतना हमसे करो नहीं।।
तुम्हारी यह नफरत ही——————–।।
वहम अपने दिल का दूर करो तुम।
गलत क्या है यह मालूम करो तुम।।
सितम तुमपे हमने तो किया नहीं कोई।
सितम बेवजह हमपे करो नहीं।।
तुम्हारी यह नफरत ही——————-।।
तुम्हें दिल से हमने क्या नहीं दिया।
मगर सुख तुमने कभी नहीं दिया।।
अपनी जिंदगी की खुशी माना तुम्हें ही।
नाराज इस तरहां हमको करो नहीं।।
तुम्हारी यह नफरत ही——————–।।
खेले क्यों पहले तुम मेरे दिल से।
सजाई क्यों अपनी तस्वीर मेरे लहू से।।
गुनाह करके भी हमको करते हो बदनाम।
मजबूर सजा को हमें करो नहीं।।
तुम्हारी यह नफरत ही——————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)