यह जीवन हमें, रात दिन नचाता है
कभी सांझा किया, कभी छुपा लिया……
कभी चिल्ला चिल्ला कर ,बयां किया…..
नहीं फर्क पड़ा दुनिया को ,मेरी बातों से…
हर किसी ने सुनकर, नजर अंदाज किया…
जीवन मायाजाल…..
यह जीवन हमें, रात दिन नचाता है…..
कभी जोकर ,कभी कठपुतली बनाता है.
न जाने किसके हाथ है, हम सब की डोर ,
कभी मजबूत ,तो कभी कमजोर …….
हम भी नाच रहे हैं ,रात दिन इस के इशारे पर,
एक अनजाने से भय ने, डाला डेरा दिल पर. ।
अच्छे बुरे के चक्र से, निकल नहीं पाते हैं ,
और जीवन को ठीक से, समझ नहीं पाते हैं ।।
फिर हम हो हताश, किस्मत को कोसते हैं,
हर बात को ,फल भाग्य का बोलते हैं……।
यही तो माया जाल , बिछाया जीवन ने ….,
और इसी के आगे पीछे, जीवन भर डोलते हैं ।।
उलझ कर रह जाते हैं ,इस मायाजाल में,
जीवन के अजीब ,करतब और खेल में…।
कुछ नहीं दिखता ,केवल अंधेरा दिखता है ,
जो इस मायाजाल के, चक्र में फंसता है…।।
ईश्वर ने सभी को, दिये हैं त्रिनेत्र …….
हमें अब वह तीसरा नेत्र ,खोलना होगा…,……..
तोड़कर इन मायाजाल और कठपुतली के डोर को ,
ढूंढना होगा इस जीवन के ,सुख-दुख के छोर को….।।
दीपाली कालरा