“”यह जीवन प्रेम की बगिया””
महकते फूल गुलशन के, भंवरों की भीड़ थी भारी।
रसिक बनके मचलते थे, कलियां भी लगती थी प्यारी।
शोर था गुनगुन का ऐसा,मधुर संगीत के जैसा।
रही थी झूम यह मानो ,बगिया तो सारी की सारी।।
पहुंच कर हमने भी अपना, राग था ऐसा जा छेड़ा।
हमारी प्रेम धुन पर तो,सभी की हिम्मत थी हारी।।
सभी का रुख तो अब हमारी ओर आया था।
सुनाएं हमने सबको गीत, थे हम सभी के आभारी।।
कहा हमने सुनो सारे,जिसे तुम चुनने आए हो।
निभाना साथ जीवन भर,है अनुनय सीख हमारी।।
मान कर बात वे मेरी आज खुशियों से मिलते है।
यह जीवन प्रेम की बगिया ,प्रीत से चले दुनियां सारी।।
राजेश व्यास अनुनय