यह जीवन का खेल
एक गुब्बारे से
खेलने के लिए
उसमें हवा भरी
हवा में उसे उछाला
धीरे धीरे वह ढीला पड़ने लगा और
उसकी हवा निकल गई
अब मैं किसके साथ खेलूं
तेरा मेरा रिश्ता
बस इतना भर था
रास्ते के एक मोड़ से
तू मुड़ गया
मैं जहां थी वहां रह गई
तू मुझे अपने साथ लेकर
क्यों नहीं गया
मैं तेरे साथ
तेरे पीछे पीछे क्यों नहीं
गई
यह जीवन का खेल भी
एक पहेली सा ही है ना
इसे बूझते रहो
उम्र भर जूझते रहो
इसे सुलझाते रहो
खुद को उलझाते रहो
पर कभी कोई ठोस हल
आज तक किसी को
मिल पाये
जीवन के खेल को
बिना समझे भरपूर खेलो पर
सारा खेल खेलकर भी
आखिर में इस खेल की
बारीकी को कहीं से भी
क्या हम समझ पाये
हवा से भरा गुब्बारा
हवा के बिना गुब्बारा
जीवन के अंत में
न हवा
न गुब्बारा
कौन मिला
कौन बिछड़ा
कौन कहां गया
इस रहस्य को तो
बड़े बड़े संत महात्मा भी
न समझ पाये।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001