यह जिंदगी का सवाल है
मुझको अपना बचपन याद है,
गुजारे हैं तीस वर्ष काँटों में,
आया है मुझको बहुत गुस्सा,
उनकी स्वामी भक्ति पर,
बहे हैं मेरे आँसू उनकी बेबसी पर,
तब मैं मासूम और नादान था,
ख्याल उनकी पगड़ी का था।
लेकिन यह दुनिया गवाह है,
कि मैं कभी नहीं झुका उसके लिए,
जो मुझको पसंद नहीं आया,
गुलामी का तो मैं विपक्षी रहा हूँ,
इस सामंतवाद और राजतंत्र से,
मुझको प्रेम नहीं रहा बचपन से ही।
अब मैं पूर्ण सक्षम हूँ,
अपनी इच्छा पूरी करने के लिए,
अपनी जिद और सपनें पूरे करने के लिए,
मगर मैं नहीं चाहता कभी,
अपनी जिंदगी दांव पर लगाना,
चाहे मुझको रहना पड़े अकेला कल।
लेकिन मुझको गर्व है खुद पर,
मुझको अभिमान है अपने ईमान पर,
मुझको विश्वास है अपने कर्म पर,
मुझको नहीं कोई शिकायत इससे,
कि लोग मुझ पर हंसेंगे कल को,
लेकिन मैं जीना नहीं चाहता सिर झुकाकर,
वह सहना जो मुझको बर्बाद करें,
क्योंकि यह जिंदगी का सवाल है।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)