यह कैसी सामाजिक दूरी
करोना न बढ़ा दी इंसानों में दूरी ।
आखिर कब तक रहेगी ये मजबूरी ।
दो साल से मिले नहीं हम अपनों से ,
यूं लगे है जैसे बरसो की हो दूरी ।
रिश्ते तरस रहे हैअब पुनर्जीवन को ,
जाने कब दिलों की आस होगी पूरी ।
गर मिल भी जाए तो बस दीदार करलें ,
गले मिलने की हसरत रहेगी अधूरी ।
गले मिलें ना सही पास तो बैठ जाएं ,
इतनी भी ना दी हमें करोना ने मंजूरी ।
दुष्ट दीवार बनकर खड़ा हमारे बीच ,
जाने कब दीवार टूटेगी,कब मिटेगी दूरी ।
अबआपसी प्यार से बड़ा वायरस हुआ ,
नजर मिलते बढ़ाते है दो गज की दूरी ।
चेहरे भी अब कहां पहचाने जाते हैं !
मास्क पहनना बहुत हो गया जरूरी ।
क्या करें अपनों की जिंदगी के लिए ,
ये सख्त कदम उठाना है बहुत मजबूरी ।
हे प्रभु! इस बला से कब मिलेगी मुक्ति?
हमारे जीवन से जायेगी सामाजिक दूरी ।