यह कैसा है न्याय..?
पढा लिखा चपरासी,
किन्तु अनपढ है सरदार;
पढे लिखे का मोल क्या
जब अंगुठा टेक परधान,
यह कैसा है न्याय
भाई यह कैसा है न्याय?
धृतराष्ट्र गद्दी पे बैठा,
दूर्योधन का राज;
शकुनि के पाशों मे उलझा
सारा राष्ट्र विधान,
यह कैसा है न्याय
भाई यह कैसा है न्याय?
चीरहरण करके दुशासन
बना है पहरेदार,
अस्मत लूट रहा नारी का
वहीं है खेवनहार,
यह कैसा है न्याय;
भाई यह कैसा है न्याय?
शिक्षा है भगवान भरोसे
शिक्षक आठवीं पास,
इनके ऊपर शिक्षामंत्री
निपढ़ अंगुठा छाप,
यह कैसा है न्याय;
भाई यह कैसा है न्याय?
मुख्य मंत्री अनपढ किन्तु
पढा लिखा दरवान,
मिलजुल कर कर रहे सभी
देश का बंटाधार,
यह कैसा है न्याय;
भाई यह कैसा है न्याय?
न्याय बीक रहा मोल कौड़ी के
बेचे न्याय निधान,
सत्य पराजित माया के बल
कैसा बना विधान?
यह कैसा है न्याय;
भाई यह कैसा है न्याय?
सुख चाहो नेता बन जाओ
पढा लिखा बेकार,
हजम करो जन – जन का पैसा
समझो स्व अधिकार,
यह कैसा है न्याय;
भाई यह कैसा है न्याय?
——–
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”